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कैलास मंदिर एलोरा (ELORA CAVES)

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       महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले से 25 किलोमीटर की दुरी पर स्थित एलोरा  की कुल 34  गुफाओ की गुफा नंबर  16  में  पहाड़ को काटकर बनाया गया विशाल  मंदिर है यह विश्व का विशालतम एकाश्म मूर्ति का मंदिर है ।  जिसे कैलाश  मंदिर के नाम से जाना जाता है। मंदिर शिव भगवान् को समर्पित है मंदिर का निर्मार्ण (757 - 773 इस्वी ) राष्ट्र कूट शासन काल के शासक कृष्ण प्रथम के कार्य काल में हुआ। इसको पूर्ण करने में लगभग 150 वर्ष का समय एवं 7000 मजदूर लगे । मंदिर को बनाने के दौरान लगभग 40 हजार टन पत्थर को काटा गया।  एलोरा गाँव के निकट स्थित होने के कारण इन गुफाओं का का नाम एलोरा गुफाए पड़ा,  गुफाए  बौध धर्म  , हिन्दू धर्म एवं  जैन धर्म को समर्पित होने के कारण यहाँ सभी धर्मो के श्रधालुओं की भीड़ रहती है । गुफा नम्बर  13 से 29 तक हिन्दू धर्म को समर्पित है ।   मंदिर को हिमालय के कैलाश पर्वत के मंदिर का रूप देने का भरपूर प्रयास  किया गया । मंदिर का निर्माण पर्वत की चोटी से पथरों को तरास  कर प्रारंभ किया गया था। मंदिर में विशाल शिव लिंग है।  शिव लिंग की तरफ मुंह करके बैठे नंदी की प्रतिमा है।

गंगईकोंड चोलपुरम मंदिर या गंगईकोंड चोलपुरम का ब्रहिदेश्वर मंदिर

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गंगईकोंड  चोलपुरम मंदिर या गंगईकोंड  चोलपुरम का ब्रहिदेश्वर मंदिर           गंगईकोंड चोलपुरम मंदिर का निर्माण चोल शासक राजराज प्रथम के पुत्र राजेंद्र चोल प्रथम (जिसकी उपाधि गंगई कोंड चोल या दक्षिण भारत का नेपोलियन थी ) ने वर्ष 1025- 1035 इस्वी में कराया था।         राजेन्द्र चोल ने अपनी नयी राजधानी गंगईकोंड चोलपुरम जो की वर्तमान तमिलनाडु की सांस्कृतिक राजधानी तंजावुर से मात्र 70 किलोमीटर की दुरी पर है  में स्थापित की और १०२५ इस्वी में अपने पिता द्वारा निर्मित तंजावुर के ब्रिह्देश्वर मंदिर  से भी बड़ा मंदिर बनवाने के उद्देश्य से इस मंदिर निर्माण कार्य प्रारंभ किया इस मंदिर का निर्माण १०३५ इस्वी में संपन्न हो सका ।         मंदिर शिवभगवान् को समर्पित है । मंदिर में 13.5 फुट ऊंचाई व ६० फुट परिधि में निर्मित विशाल शिव लिंग है जो की दक्षिण भारत के शिव मंदिरों में सर्वाधिक विशालतम शिवलिंग है। मंदिर के प्रांगड़ में तालाब है । कहा जाता है की राजेन्द्र चोल ने गंगा नदी तक अपनी विजय के दौरान गंगा नदी से जल लाकर इस तालाब का निर्माण कराया था ।      मंदिर का आकार पिरामिड नुमा है

कोणार्क का सूर्य मंदिर या ब्लैक पैगोडा (BLACK PAGODA OR SUN TEMPLE)

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         UNESCO की विश्व धरोहर में शामिल ये मंदिर  ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर से 70 किलोमीटर दूर पूरी में स्थित है सूर्य मंदिर का निर्माण पल्लव शासक   नरसिंह देव वर्मन प्रथम ने 13 वी सताब्दी में करवाया था  ।  सूर्य भगवान के रथ के आकार में निर्मित इस मंदिर में आधार पर एक चबूतरा है और इसके चारो ओर 24 पहिये है जिनको 7 अश्व खींच रहे है ।  मंदिर को देखकर एसा प्रतीत होता है की सूर्य भगवान के रथ को सात घोड़े खीच रहे है।  इस मंदिर के तीन हिस्से हैं- नृत्य मंदिर ,  जगमोहन और गर्भगृह  ।  बैज्ञानिको के अनुसार रथ के पहियों ( कोणार्क चक्र) की सहायता से दिन में समय का पता लगाया जा सकता है ।  कोणार्क में कोण  का अर्थ कोना या किनारे से है जब की अर्क का अर्थ सूर्य से है । कुछ विशेषज्ञों का मत है की सूर्य मंदिर समुद्र में बनबाया गया था जो दिन ढलने के बाद सूर्य भगवान को पानी से बाहर आने का आभास कराता था ।              यूरोपीय नाविक मंदिर को  ब्लैक पैगोडा कहते थे क्यों की रात्रि में जब नाविक जहाजों से गुजरते थे तो मंदिर की छत उनको दिशा निर्देशन में महत्व पूर्ण भूमिका निभाती थी ।  वर्तमान में

मंदिरों की बेसर शैली (VESAR SAILI)

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बेसर शैली में निर्मित एलोरा का कैलाश मंदिर  मंदिरों की बेसर शैली  :-      बेसर शैली के विकास का श्रेय मुख्यतयः चालुक्यों व होयसला शासकों को जाता है  चालुक्य शासकों ने उत्तर भारत व दक्षिण भारत के मंदिरों की खास विशेषताओं को मिलाकर एक अलग पहचान वाली तीसरी शैली का विकाश किया  ।  इन मंदिरों का निर्माण सातवीं से आठवीं शताब्दी के बीच में शुरू हुआ जो कि  12 वीं शताब्दी तक चला।   इस शैली का सर्वाधिक विकास दक्कन क्षेत्र में हुआ।  मध्य भारत में विंध्य क्षेत्र से लेकर कृष्णा नदी के बीच में बसे ये मंदिर अपनी अदभुत कलाकृतियों के लिये जाने जाते  कुछ इतिहासकार इन्हें बेसर शैली के मंदिर ,  तो कुछ ,  बदामी चालुक्य शैली तथा कुछ होयसला शैली के मंदिरों के नाम से भी सम्बोधित करते हैं। कुछ  इतिहासकार इस शैली को मिश्रित शैली   के नाम से भी पुकारते हैं। वेसर शैली के मंदिर ,  मुलायम व कठोर पत्थरों के मिश्रण से बने हैं। बेसर शैली में शिखर को नागर शैली की तरह व मण्डप को द्रविण शैली के अनुसार बनाया गया है नागर और द्रविड़ शैली की तुलना में इन मंदिरों की ऊँचाई अपेक्षाकृत कम है।    बेसर शैली के