गंगईकोंड चोलपुरम मंदिर या गंगईकोंड चोलपुरम का ब्रहिदेश्वर मंदिर
गंगईकोंड चोलपुरम मंदिर या गंगईकोंड चोलपुरम का ब्रहिदेश्वर मंदिर
गंगईकोंड चोलपुरम मंदिर का निर्माण चोल शासक राजराज प्रथम के पुत्र राजेंद्र चोल प्रथम (जिसकी उपाधि गंगई कोंड चोल या दक्षिण भारत का नेपोलियन थी ) ने वर्ष 1025- 1035 इस्वी में कराया था।
राजेन्द्र चोल ने अपनी नयी राजधानी गंगईकोंड चोलपुरम जो की वर्तमान तमिलनाडु की सांस्कृतिक राजधानी तंजावुर से मात्र 70 किलोमीटर की दुरी पर है में स्थापित की और १०२५ इस्वी में अपने पिता द्वारा निर्मित तंजावुर के ब्रिह्देश्वर मंदिर से भी बड़ा मंदिर बनवाने के उद्देश्य से इस मंदिर निर्माण कार्य प्रारंभ किया इस मंदिर का निर्माण १०३५ इस्वी में संपन्न हो सका ।
मंदिर शिवभगवान् को समर्पित है । मंदिर में 13.5 फुट ऊंचाई व ६० फुट परिधि में निर्मित विशाल शिव लिंग है जो की दक्षिण भारत के शिव मंदिरों में सर्वाधिक विशालतम शिवलिंग है। मंदिर के प्रांगड़ में तालाब है । कहा जाता है की राजेन्द्र चोल ने गंगा नदी तक अपनी विजय के दौरान गंगा नदी से जल लाकर इस तालाब का निर्माण कराया था ।
मंदिर का आकार पिरामिड नुमा है और इस पिरामिड के आकार के मध्य आठ मंजिले है मंदिर के दो गोपुरम (प्रवेश द्वार) है । गोपुरम से अन्दर प्रवेश करते ही विशाल नंदी की मूर्ति है जिसे नंदी मंडप भी कहा जाता है
शिव की नटराज मूर्ति भी सर्व प्रथम इसी मंदिर में देखी गयी एवं शिव की चंदेशानुग्रह मूर्ति सर्वाधिक प्रसिद है
मंदिर की सुन्दरता एवं वास्तुकला की उत्कृष्टता को देखते हुए UNESCO की विश्व धरोहर में स्थान दिया गया है ।
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