नन्द वंश (NAND VANSH)



शिशुनाग वंश - (४१२-३४४ ईसा पूर्व) के अंतिम शासक नन्दिवर्धन के पश्चात महापद्म नन्द ने नंदवंश की नीव डाली । नन्द वंश की समयावधि ३४४-३२३ ईसा पूर्व मानी गयी है इस वंश के सवसे प्रतापी शासक महापद्मनंद हुए थे ।

महापद्म नन्द - महावोधि वंश में इन्हें उग्रसेन कहा गया । जैन ग्रंथो में इन्हें शिशुनाग वंश के अंतिम राजा महानंदिन की नाई जाति की स्त्री से उत्पन्न बताया गया है । पुराणों में महापद्म नन्द को सर्व क्षत्रांतक (सभी क्षत्रियों का अंत करने वाला ) की उपाधि दी गयी। महापद्म नन्द ने एकछत्र व एकराट की उपाधि भी धारण की । हाथी गुम्फा अभिलेख में इसको कलिंग का भी स्वामी बताया गया है । 

महापद्म नन्द का राज्य पंजाब से बंगाल, मालवा , मध्यदेश तथा गोदावरी क्षेत्र तक फैला था । हाथी गुम्फा अभिलेख में नन्दों द्वारा नहर बनवाने और जिनसेन की प्रतिमा ले जाने का भी जिक्र है इससे पता चलता है की महापदमं नन्द जैन धर्म के अनुयायी थे । 12 वी सदी के लेख में नदों द्वारा कुंतल जीते जाने का भी उल्लेख है । महापद्म नन्द ने सर्व प्रथम उद्ध में हाथियों का उपयोग किया । 


प्रसिद्ध व्याकरण आचार्य और अष्टाध्याही के रचैता पाणिनि इसके मित्र थे इस अष्टाध्याही व्याकरण ग्रन्थ की रचना भी इन्ही के शासन काल में हुई इस पर भारत हमेशा गर्व करता है। नन्द बहुत ही दूरगामी द्रष्टि वाले थे उनको ज्ञात था की इतने बड़े राष्ट्र में मात्र मगधी भाषा से काम नहीं चलने बाला इस बजह से ही पाणिनि ने संस्क्रत भाषा को आत्मसात कर एक ऐसी भाषा को विकसित करने का प्रयास किया जिसमे विविधता कम हो । नन्द वंश में विद्वानों को बहुत सम्मान दिया जाता था महापद्म नन्द के सासन काल में कात्यायन, वररुचि, वर्ष और उपवर्ष जैसे प्रकांड विद्वान न केवल इसी युग में हुए बल्कि इन सब से नन्द राजाओं के मधुर रिश्ते रहे और इन सब को राज्याश्रय मिलता रहा। महापद्म नन्द की शासन व्यवस्था अतिउत्तम थी उसकी सेना में बीस हजार घुड़सवार दो लाख पैदल चार हजार चार घोड़े बाले रथ व 3 हजार हाथी थे नन्दों ने ही सर्वप्रथम सेना को राजधानी में रखने के स्थान पर राज्य की सीमा पर रखना प्रारंभ किया। सर्व प्रथम महापद्म नन्द ने ही एक राष्ट्र की संकल्पना को साकार करने का प्रयास किया।

महापद्नम नन्द के आठ उत्तराधिकारी हुए थे घनानंद इस वंश का अंतिम शासक था जो सिकंदर के समकालीन था । भाद्रसाल इसका सेनापति था । घनानंद ने जनता पर छोटी छोटी वस्तुओं पर भी कर लगा दिया था जिससे जनता उसके शासन में असंतुष्ट थी कथा सरित सागर के अनुसार नन्दों के पास ११ करोड़ स्वर्ण मुद्राए थी । हेन्सांग ने भी नन्दों के पास अतुल्य संपत्ति का वर्णन किया है 

नन्दों ने ही सर्वप्रथम भारत में एक छत्र शासन स्थापित किया और मगध को आर्थिक व राजनैतिक द्रष्टि से इतना शक्तिशाली बना दिया की सिकंदर की सेना ने नन्दों के डर से व्यास नदी को पार करने से इनकार कर दिया । नन्दों ने अपने कार्यो से यह सिद्ध किया की उंच नीच वाली वर्णव्यवस्था को आधार बनकर छोटे छोटे जनपद तो बनाये जा सकते है परन्तु ब्रह्द राष्ट्र कभी नहीं बन सकता और जब कोई राष्ट बड़ा होगा तो उसका बैचारिक आधार लचीला होना अतिआवश्यक है यही कारण है कि नन्दों का राष्ट्र धर्मनिरपेक्ष था ।







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