द्रविड़ शैली (DRAVID SHAILI)

मंदिर स्थापत्य कला द्रविड़ शैली

द्रविड़ शैली

मिनाक्षी मंदिर मदुरै

        भारत में मंदिर स्थापत्य कला की तीन प्रमुख शैलिया मिलती है जिनकी स्थिति एवं विस्तार निम्न है:-
    
    हिमालय से विंध्यांचल तक - नगर शैली 
    विंध्यांचल से कृष्णा नदी तक- बेसर शैली 
    कृष्णा नदी से कन्याकुमारी - द्रविड़ शैली 

      द्रविड़ शैली भारतीय स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण है  इसकी स्थापना पल्लव काल में हुई। इस शैली की शुरुआत 8 वी सताब्दी में हुई ये शैली राजाओं के नाम पर थी जैसे महेंद्र वर्मन शैली मामल्य शैली, राजसिंह शैली, नंदिवर्मन शैली आदि। चोल शासन काल में इस शैली का अच्छा विकाश हुआ परन्तु विजय नगर काल के बाद इस शैली का पतन होना प्रारम्भ हो गया। चोल शासन काल में ही द्रविड़ वास्तुकला में चित्रकला व मूर्ति कला का मिश्रण हो गया। 

द्रविड़ शैली के मंदिरो की मुख्य विशेषताएं :-

  • मंदिर बहुमंजिला होते थे 
  • प्रवेश द्वार को गोपुरम कहते है।  गोपुरम भव्य व चित्रकला उक्त होते थे 
  • मंदिर के चारो तरफ एक चारदीवारी होती थी जिसे  प्रदक्षिणा पथ कहा जाता है 
  • मंदिर का आकार  पिरामिड नुमा होता है  जिसके  ऊपरी भाग  विमान कहा जाता है  एवं नीचे के  भाग पर वर्गाकार या अष्टकोणीय गर्भ गृह  है 
  • प्रवेश द्वार पर द्वारपाल की मूर्तियां होती है
  • गोपुरम व विमान के मध्य एक अर्ध गोलाकार संरचना होती है जिसे मंडप कहते है 

द्रविड़ शैली के प्रमुख मंदिर -


 मदुरै का मिनाक्षी मंदिर 
थंजाबर का बृहदेश्वर मंदिर 
कांची पुरम का कैलाश मंदिर , बैकुंठ पेरुमल मंदिर 
रामेश्वरम मंदिर 




कांची का प्रसिद्ध कैलाशनाथ मंदिर

द्रविड़ शैली में ग्वालियर का तेली का मंदिर


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