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बेसर शैली में निर्मित एलोरा का कैलाश मंदिर
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मंदिरों की बेसर शैली :- बेसर शैली के विकास का श्रेय मुख्यतयः चालुक्यों व होयसला शासकों को जाता है चालुक्य शासकों ने उत्तर भारत व दक्षिण भारत के मंदिरों की खास विशेषताओं को मिलाकर एक अलग पहचान वाली तीसरी शैली का विकाश किया । इन मंदिरों का निर्माण सातवीं से आठवीं शताब्दी के बीच में शुरू हुआ जो कि 12वीं शताब्दी तक चला। इस शैली का सर्वाधिक विकास दक्कन क्षेत्र में हुआ। मध्य भारत में विंध्य क्षेत्र से लेकर कृष्णा नदी के बीच में बसे ये मंदिर अपनी अदभुत कलाकृतियों के लिये जाने जाते कुछ इतिहासकार इन्हें बेसर शैली के मंदिर, तो कुछ, बदामी चालुक्य शैली तथा कुछ होयसला शैली के मंदिरों के नाम से भी सम्बोधित करते हैं। कुछ इतिहासकार इस शैली को मिश्रित शैली के नाम से भी पुकारते हैं।
- वेसर शैली के मंदिर, मुलायम व कठोर पत्थरों के मिश्रण से बने हैं।
- बेसर शैली में शिखर को नागर शैली की तरह व मण्डप को द्रविण शैली के अनुसार बनाया गया है
- नागर और द्रविड़ शैली की तुलना में इन मंदिरों की ऊँचाई अपेक्षाकृत कम है।
बेसर शैली के कुछ प्रंमुख मंदिर निम्न है:-
ऐहोल को मंदिर,
बेलूर का द्वार समुद्र मंदिर,
सोमनाथपुरम का मंदिर,
एलोरा का कैलाशनाथ मंदिर
कर्नाटक
के पट्टा दक्कल के मंदिरों को UNESCO ने विश्व धरोहर में भी शामिल किया है।
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